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तीरंदाज अर्जुन और समय का चक्र- arjun ka lakshya

🎯 लक्ष्य तय करने की प्रेरणादायक कहानी –  🌿 भूमिका: कहते हैं कि जीवन बिना लक्ष्य के वैसा ही है जैसे बिना पतवार की नाव। एक दिशा चाहिए, एक मंज़िल चाहिए। यह कहानी है एक साधारण लड़के अर्जुन की, जिसने भविष्य के लिए ठोस लक्ष्य तय करके अपनी किस्मत को खुद लिखा। कहानी: अर्जुन और उसका लक्ष्य गाँव के एक छोटे से स्कूल में पढ़ने वाला अर्जुन नाम का लड़का हर विषय में औसत था। न तो पढ़ाई में अव्वल, न खेल-कूद में तेज़। लेकिन उसके अंदर एक बात खास थी — उसके सपने बहुत बड़े थे । एक दिन स्कूल में शिक्षक ने पूछा – “तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?” सभी बच्चों ने कहा – डॉक्टर, इंजीनियर, क्रिकेटर… लेकिन अर्जुन चुप था। शिक्षक ने कहा – “तुम कुछ नहीं बनना चाहते?” अर्जुन ने धीमी आवाज़ में कहा – “मैं समय को मात देना चाहता हूँ।” सब हँस पड़े। लेकिन शिक्षक ने मुस्कुराते हुए पूछा – “कैसे?” अर्जुन बोला – “हर कोई कहता है कि समय नहीं रुकता। लेकिन मैं ऐसा कुछ बनना चाहता हूँ कि आने वाली पीढ़ियाँ मेरा नाम समय के साथ याद रखें। मैं वैज्ञानिक बनना चाहता हूँ और देश के लिए ऐसा आविष्कार करना चाहता हूँ जो दुनिय...

WHEN KRISHNA COMES - BHAGWAD GEETA SHLOK HINDI

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भगवद गीता के श्लोक ईश्वर के अवतार के बारे में  श्लोक ७ : यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजामयहम। अर्थ: हे भरतवंशी, अर्जुन जब-जब इस सृष्टि में धर्म की हानि होती है, अर्थात जब अधर्म, दुर्गण, दुराचारों की अत्यधिक वृद्धि हो जाती है तथा सद‌गुण, सदाचार और धर्मात्मा कमी होने लगती है एवं `निरपराध, निर्बल मनुष्यों पर पापी दुराचारी और बलवान मनुष्य अत्याचार करने लगते हैं। तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूँ और इस धरती पर अवतरित होता हूँ।  श्लोक ८ : परित्राणाय  साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम  धर्मसंस्थापनाथार्य  सम्भवामि युगे युगे   साधु मनुष्यों की रक्षा के लिए अर्थात अच्छे मनुष्यों जो सत्कर्म करते है ,जो  भगवान के भक्त है एवं जो धर्म की प्रचार करते है उनकी सद्गुणों एवं भावों की रक्षा के लिए तथा  दुष्टों के विनाश के लिए और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ। सारांश: जब धरती पर पाप और अन्याय बढ़ता है, और सज्जन लोग पीड़ित होते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण जैसे ईश्वर अवतार लेकर अधर्म का नाश कर...

"भाषा अलग, सोच एक — हम सभी भारतीय हैं"

  "हमारी भाषाएँ अलग हो सकती हैं, लेकिन आत्मा एक है — हम सभी भारतीय हैं।" "भाषा अलग, सोच एक — हम सभी भारतीय हैं" आज जब हम हिन्‍दी, बंगाली, मराठी, कन्‍नड़ को लेकर बहस करते हैं, तो हम भूल जाते हैं कि भारत की असली पहचान उसकी भाषा नहीं, उसके मूल्य, उसका संस्कार है। अगर तुम भाषा से भारत को बाँटना चाहते हो, तो तुम्हें इतिहास के पन्ने पलटने होंगे। क्योंकि वहाँ तुम पाओगे —   हिंदी भाषी — डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्होंने भारत का संविधान लिखा, जिसकी हर लाइन कहती है: 👉 "सभी समान हैं — चाहे भाषा, धर्म, जाति कुछ भी हो।" 🔸 तमिल भाषी — डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम — जिन्होंने रॉकेट बनाए, लेकिन सपने भी दिए। 👉 उन्होंने कहा था: "महान सपने देखने वालों के सपने हमेशा पूरे होते हैं।" 🔸 बंगाली भाषी — रविंद्रनाथ ठाकुर, जिन्होंने बंगला में लिखा, लेकिन शांतिनिकेतन रचा — एक वैश्विक शिक्षा का मंदिर। 👉 उन्होंने लिखा: "जहाँ मन भय से मुक्त हो और मस्तक ऊँचा हो..." 🔸 मराठी भाषी — छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने भारत की रक्षा के लिए युद्ध किया, लेकिन जिनका हृदय सिर्फ म...

वटवृक्ष की छांव - The banyan's tree Shadow

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"वटवृक्ष की छांव"  गाँव के बीचोंबीच एक पुराना वटवृक्ष खड़ा था। कहते हैं, जब गाँव बसा भी नहीं था, तब से वह पेड़ वहीं था। उसकी छांव में पीढ़ियाँ पलीं, किस्से कहानियाँ जन्मीं, और थकी ज़िंदगियाँ चैन पाती रहीं। एक बार गाँव के सरपंच ने सोचा – "इस पेड़ की जगह बाजार बना देते हैं, गाँव की तरक्की होगी।" सभी ने हामी भरी, सिवाय एक बुज़ुर्ग दादी के। दादी बोलीं – "ये पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं, ये तो समय का साक्षी है। हमने इसके नीचे सावन बिताए हैं, रामायण सुनी है, और बिछड़े अपनों को याद किया है। ये बाजार से नहीं बदला जा सकता।" लोगों ने उनकी बात सुनी और पेड़ को बचा लिया। आज भी उस वटवृक्ष के नीचे गाँव के बच्चे खेलते हैं, बुज़ुर्ग विश्राम करते हैं और हर साल वहाँ सामूहिक पूजा होती है। वह पेड़ अब  "गाँव का ह्रदय " बन गया है। 🌿 पेड़ सिर्फ प्रकृति नहीं, हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। उन्हें बचाना, खुद को बचाना है। ---               वटवृक्ष की छांव - The banyan's tree Shadow #पेड़_बचाओ #प्रकृति_से_प्यार #GreenIndia #TreeStory

आखिर क्यों..??????? VOICE FOR WOMEN

 आखिर क्यों..??????? चाहे हजारों स्त्री से उसके संबंध हो, चाहे कई नाजायज़ अनुबंध हो, लेकिन पुरुष कभी वेश्या नहीं कहलाते। चाहे वह कितने ही प्रपंच कर ले. और इससे कितने ही प्राण हर ले, लेकिन पुरुष कभी डायन नही कहलाते। अपनी खानदानी अस्मत कोठों पर बेच आता है, नज़रे पराई स्त्री पर चाहे लगाता है, लेकिन पुरुष कभी कुल्टा नहीं कहलाते। चाहे ये कितने ही क्रूर स्वभाव के हों, चाहे कितने ही घृणित बर्ताव के हों लेकिन पुरुष कभी चुड़ैल नहीं कहलाते। यहां तक की दो पुरूषों के झगडे में घर से लेकर सड़क तक के रगड़े में स्त्रियों के नाम पर ही गालियां दी जाती हैं, और फिर शान से ये मर्द कहलाते हैं। क्यों डायन, कुल्टा, चुड़ैल, वेश्या, बद्दलन केवल नारी ही कहलाए.. .? क्या इन शब्दों के पुर्लिंग शब्द, पितृसत्तात्मक समाज ने नहीं बनाए.......? क्या यहाँ कोई ऐसा पुरुष है जिसे सड़क पर चलते हुए ये भय लगता हो कि अकस्मात ही पीछे से तेज़ रफ़्तार में एक स्कॉर्पियो आएगी और उसमें बैठी चार महिलाएँ जबरन उसे गाड़ी में उठा कर ले जायेंगी उसका बलात्कार करेंगी और किसी सुनसान जगह पर अधमरी हालत में एक बड़े पत्थर से उसका सिर कुचल देंग...

DO PARIWAR KI KAHANI - दो परिवार की कहानी

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दो परिवार एक दूसरे के पड़ोस में ही रहते थे। एक परिवार हर वक्त लड़ता - झगड़ता था जबकि दूसरा परिवार शांति से और मैत्रीपूर्ण रहता था। एक दिन, झगड़ालू परिवार की पत्नी ने शांत पडोसी परिवार से ईर्ष्या महसूस करते हुए अपने पति से कहा, “अपने पडोसी के वहा जाओ और देखो की इतने अच्छे तरीके से रहने के लिए वो क्या करते हैं।” पति वहां गया और छुप के चुपचाप देखने लगा। उसने देखा कि एक औरत फर्श पर पोछा लगा रही हैं। अचानक किचन से कुछ आवाज आने पर वो किचन में चली गई। तभी उसका पति एक रूम कि तरफ भागा। उसका ध्यान नहीं रहने के कारण फर्श पर रखी बाल्टी से ठोकर लगाने के कारण बाल्टी का सारा पानी फर्श पर फेल गया। उसकी पत्नी किचन से वापिस आयी और अपने पति से बोली, “आई एम सॉरी, डियर । यह मेरी गलती थी कि मेने रास्ते से बाल्टी को नहीं हटाया।” पति ने जवाब दिया  -  नहीं डियर, आई एम सॉरी। क्योकि मेने इस पर ध्यान नहीं दिया। झगड़ालू परिवार का पति जो छुपा हुआ था वापस घर लोट आया। तो उसकी पत्नी ने पडोसी की खुशहाली का राज पूछा। पति ने जवाब दिया - उनमे और हम में बस यही अंतर हैं कि हम हमेशा खुद सही होने कि कोशिश करते है। एक दूसर...

tree plantation & global warming - पेड़ लगाना और ग्लोबल वार्मिंग

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 पेड़ लगाना और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में कुछ मुख्य बातें  पेड़ लगाना - Tree Plantation 1. पेड़ लगाना एक वरदान है, जो हमें प्रकृति के करीब लाता है। 2. हर पेड़ एक जीवन है, जो हमें ऑक्सीजन देता है और हमें जीवित रखता है। 3. पेड़ लगाना एक भविष्य की सोच है, जो हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और हरित भविष्य प्रदान करता है। 4.पेड़ हमारे जीवन के लिए ऑक्सीजन का स्रोत हैं, और उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। 5 . हर पेड़ एक जीवन को बचाता है, और पेड़ लगाना एक जीवन को बचाने के समान है। 6. पेड़ लगाना एक निवेश है, जो हमें भविष्य में स्वस्थ और हरित वातावरण प्रदान करता है। ग्लोबल वार्मिंग - Global warming 1. ग्लोबल वार्मिंग एक चेतावनी है, जो हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है। 2. हमारी पृथ्वी की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने के लिए हमें काम करना होगा। 3. ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई एक संयुक्त प्रयास है, जिसमें हमें सभी को योगदान देना होगा। 4. ग्लोबल वार्मिंग एक खतरनाक चुनौती है, जिसका सामना करने के लिए हमें एकजुट होना ह...

tu badhte jana - तू बढ़ते जाना

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रास्ते में आएंगी रुकावटें बहुत मगर तू बढ़ते जाना रोकेगा ज़माना तुझे पर तू चलते जाना। जब रहेगी सामने मंज़िल तेरे तो रुकावटों पर नज़र भी नहीं जा पाएगी रास्ते हो जाएंगे आसान तेरे जब सपनो में भी मंज़िल नज़र आएगी। यूँ जमीन पर बैठकर क्यूँ  आसमान देखता है, पँखों को खोल जमाना  सिर्फ उड़ान देखता है। उम्र थका नहीं सकती ठोकरे गिरा नहीं सकती  अगर जिद हो जितने की तो परिस्थितिया भी हरा नहीं सकती। ज्यादातर महान लोगों को उनकी सबसे बड़ी सफलता उनकी सबसे बड़ी असफलता के बाद मिली , इसलिए दोस्तों कोशिस करते जाओ, चाहे रास्ते में हजार मुश्किलों हो , स्वयं पर विश्वास रखो और ईश्वर से प्राथना करो की आप जिस अच्छे काम को करना चाहते है उसमे वह आपकी सहायता करें।   tu badhte jana - तू बढ़ते जाना  आगे पढ़े। .....   मर्द को दुख तब नहीं होता . . .  . . . .  हिंदी कविताएं  .  प्रेरणादायक लेख  .

वो गिराएंगें बार बार तू उठकर फिर से चलता चल – wo girayenge baar baar tu uthkar fir se chal

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मेरी सूनी हुई Best motivational कविता में से एक  ठोकरें अपना काम करेंगी तू अपना काम करता चल वो गिराएंगें बार-बार तू उठकर फिर से चलता चल हर वक्त, एक ही रफ्तार से दौड़ना कतई जरुरी नहीं तुम्हारा मौसम की प्रतिकूलता हो तो बेशक थोड़ा सा ठहरता चल अपने से भरोसा न हटे बस ये ध्यान रहे तुम्हें सदा नकारात्मक ख्याल दूर रहे तुझसे उनसे थोड़ा संभलता चल पसीने की पूंजी लूटाकर दिन रात मंजिल की राह में दिल के ख़्वाबों को जमीनी हकीकत में बदलता चल एक दिन में नहीं लगते किसी भी पेड़ पर फल कभी भी पड़ाव दर पड़ाव ही सही अपनी मंजिल की ओर सरकता चल। – अंजान मित्र  वो गिराएंगें बार बार तू उठकर फिर से चलता चल – wo girayenge baar baar tu uthkar fir se chal . . . Hindi poem by India motivation हिंदी की बेहतरीन कविताएं और कहानियां Indiamotivation.com पर पाए