DR RAGHUVANSH SAHAY VERMA - BIOGRAPHY
DR RAGHUVANSH SAHAY VERMA - BIOGRAPHY
डॉ. रघुवंश सहाय वर्मा का जन्म 30 जून 1921 को उत्तर प्रदेश में हरदोई जिला के गोपामऊ कस्बे में हुआ था । उनके दोनों हाथ जन्म से अपंग थे। इस कारण वो 8 वर्ष तक सिर्फ पढ़ना ही सिख पाये थे।अपंगता को हम प्राय: जीवन का अभिशाप मानते हैं। जब हम किसी नेत्रहीन या हाथ-पैर से अपंग इंसान को देखते है , हमारे मन में दया आ जाती है। लेकिन रघुवंश सहाय जी अपने मन में ये संकल्प कर लिया की वो अपने अपंगता को अपनी कमजोरी नहीं बनने देंगे और उन्होंने अपने पैर से लिखना शुरू कर दिया। उनके जीवन में अनेक विपरीत परिस्थितिया आयी लेकिन वो निरंतर आगे बढ़ते ही रहे। उन्होंने पैर से लिखने में महारथ हासिल कर लिया वो जिस तेजी से पैर से लिखते थे वो उन विदवानों से भी संभव न हो सका जो मजबूत हाथ लेकर जन्म लिये। उनका हाथ अपंग था लेकिन उनका मन मजबूत था और उन्होंने ये प्रमाणित कर दिया की कोई व्यक्ति मन से कुछ करने का ठान ले तो वह क्या नहीं कर सकता , यह मन ही तो हैं , जिसमे चाह है ,लक्ष्य है हिम्मत और पवित्रता हैं।महाकवि प्रसाद जी द्वारा लिखी गयी कुछ पंक्तिया मुझे याद आ रही है, जिसमे उन्होंने मन के बारे में कहा है -
मन जब निश्चित-सा कर लेता कोई मत है अपना
बुद्धि-देव-बल से प्रमाण का सतत निरखता सपना
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी भाषा में एम.ए और हिंदी साहित्य के" भक्ति और रीतिकाल में प्रकृति और काव्य " विषय पर डी.फील किया था । में किसी से काम नहीं हूँ यह भाव प्रारंभ से ही उनके अंदर रहा हैं। इस संकल्प शक्ति के कारण ही डॉ रघुवंश निरंतर लिखते रहे।
उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ जो प्रकशित हुई -
- तंतुजाल
- अर्थहीन
- छायालय (कथा साहित्य )
- हरिघाटी (यात्रा संस्मरण )
- मानस पुत्र ईसा (जीवन )
जुलाई 1963 में उनका सुविचारित आलेख "नये राष्ट्र और वर्तमान की चुनौती " प्रकशित हुआ।
1985 में श्री भगवान दास पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा डॉ रघुवंश को दिया गया।
उनको अन्य सम्मान भी मिले जिनमें से बिड़ला ट्रस्ट द्वारा दिया गया "शंकर पुरस्कार " सर्वोच्च हैं।
1994 में उन्हें "भारत भारती पुरस्कार " प्रदान किया गया।
डॉ रघुवंश जी ने अपने मन की मजबूती ,संकल्प शक्ति और अपने बलबूते पर वह निरंतर अग्रसर हुये और सर्वोच्च पद पर अवकाश प्राप्त किये। सच्चे अर्थो में वह कर्मयोगी रहे हैं।
वह लेखन कार्य के अलावा समस्त रोजमर्रा के काम वो अपने पैरों से ही करते है।
शिक्षा : इस दुनिया में कोई भी इंसान चाहे तो अपने इच्छाशक्ति से कुछ भी हासिल कर सकता है। किसी ने सच ही कहा है की तन से विकलांग इंसान भी सबकुछ कर सकता है लेकिन जो मन से विकलांग हो गया वो कभी कुछ नहीं कर सकता। डॉ रघुवंश जी इनके उदाहरण है ये हाथों से विकलांग होते हुए भी इतने सारे उपलब्धियाँ अपने मन की शक्ति से हासिल की है।
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