KABIR DAS KI JIVANI - कबीर दास की जीवनी
KABIR DAS KI JIVANI
संत कबीर दास जी एक महान संत थे, उनका मानना था की ईश्वर हमारे अंदर ही है और हम उन्हें मंदिर मस्जिद में तलाशते है। उनका जन्म और मृत्यु दोनों चमत्कारिक रूप से हुआ। कबीर दास जी का जन्म १५वीं शताब्दी में वाराणसी मे हुआ था, ऐसा कहा जाता है की वह लहरतारा नाम के तालाब के एक बड़े कमल पुष्प के ऊपर पाए गए थे। नीरू और नीमा नाम का एक जुलाहा दंपति, जिसकी कोई सन्तान नहीं थी, उन्होने इस बच्चे का पालन पोषण किया।
कबीर दास जी गुरु रामानन्द का शिष्य बनना चाहते थे, लेकिन क्योंकि वो जुलाहा के घर पला बढ़ा था, इसलिए रामानन्द जी ने उन्हें शिष्य बनाने से इंकार कर दिया। लेकिन कबीर दास जी ने हार नहीं मानी उन्होंने ठान लिया की वो रामानन्द के शिष्य बनके ही रहेंगे। इसलिए उन्होंने उपाय सोचा और एक दिन जब गुरु रामानन्द सुबह 4 बजे स्नान करने आ रहे थे तब वह गंगाघाट के सीढ़ियों पर जाकर अँधेरे में सो गए। और जब रामानंद का पैर उसके शरीर पर पड़ा तब रामानंद जी के मुँह से राम-राम निकला। तभी से कबीर दास जी ने राम नाम को ही दीक्षा-मंत्र मान कर उन्हें अपना गुरु मान लिया। और गुरु रामानंद जी ने भी उसे शिष्य स्वीकार कर लिया।
कबीर दास जी राम नाम की भक्ति करते थे। वह राम को किसी रूप या आकर में नहीं मानते थे क्योंकि वह भगवान् राम को किसी आकार में नहीं बांधना चाहते थे। उनके लिए राम तो कण कण में रहते हे। कबीर के अनुसार भक्ति के लिए भाव जरुरी है। इसलिए वह उनके नाम की भक्ति करते थे। उनके लिए राम ही सब कुछ है वह हर जीव में हे वही ईश्वर वही अल्लाह है। उनका मानना था की मनुष्य ईश्वर को भक्ति के द्वारा अपने अंदर ही पा सकता है। इसके लिए उन्हें मंदिर मस्जिद जाने की जरुरत नहीं है। इसलिए वह मूर्ति पूजा, नमाज़ पढ़ना, मंदिर, मस्जिद जाना सब व्यर्थ मानते थे। इसके तर्क के ऊपर उन्होंने एक दोहा कहा था।-
जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग
तेरा साई तुझ ही में हे , जाग सके तो जाग
अर्थात जिस तरह तिल के अंदर तेल है और जैसे चकमक पत्थर के अंदर आग, उसी तरह हमारे अंदर ही ईश्वर है। इसलिए कबीर दास जी कहते है की अगर तुझमे शक्ति है तो जगा ले ईश्वर को अपने अंदर से।
उस समय में हिन्दू मुस्लिम में बहुत भेद रहता था। कबीर दास जी ने अपनी ज्ञान और विचारो से हिन्दू-मुसलमानो को भेद खत्म करके एक कर दिया। और इस तरह सभी जाती और धर्म के लोग उनके अनुयायी बनने लगे थे। उनके अनुयायियों को कबीर पंथ के नाम से जाना जाता है ।
अर्थात जिस तरह तिल के अंदर तेल है और जैसे चकमक पत्थर के अंदर आग, उसी तरह हमारे अंदर ही ईश्वर है। इसलिए कबीर दास जी कहते है की अगर तुझमे शक्ति है तो जगा ले ईश्वर को अपने अंदर से।
कबीर दास जी ने उस समय एक और दोहा कहा था जो आज के समाज की भी वास्तविकता बताती है।-
हिन्दू कहें मोहि राम प्यारा, तुर्क कहें रहमाना
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए , मरम न कोउ जाना।
अर्थात, कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से हमें यह कहना चाहते है की हिन्दू कहते है मेरा राम सच है वह हमें पसंद है , तुर्क (मुस्लिम) कहते हे मेरा रहमान सच है। और इस बात पर लड़कर दोनों मरते है, लेकिन कोई सच को जान नहीं पाया, कोई मानना नहीं चाहता की ईश्वर एक है। कोई इस सच को देखना नहीं चाहता।
कबीर दास जी पढ़े लिखे नहीं थे। वह अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे और शिष्य उन्हें लिख लेते थे। उन्होंने अपने जीवन काल में जितनी भी दोहे और वाणी कही वो सभी "बीजक" में संग्रहित है।
कबीर दास जी पूरी तरह से समाज में फैले अन्धविश्वाश के खिलाफ थे, इस बात की पुष्टि इस घटना से की जा सकती है की उस समय लोग मानते थे की कशी में मरने पर स्वर्ग मिलता है और मगहर में मरने पर नर्क। इसलिए कबीर दास जी अपने अंत समय में मगहर चले गए थे और वही अपना अंतिम साँस लिये। ऐसा कहा जाता है की जब उनके मृत्यु हुई तो हिंदू मुस्लिम यह कहकर तर्क करने लगे की वो मुस्लिम है उन्हें दफनाया जायेगा और हिंदू कहने लगे नहीं, कबीर हिन्दू हे उन्हें जलाया जायेगा। और तभी उनका शरीर वहां से गायब हो गया और वहां फूल पड़े हुए मिले। उनका जीवनकाल 120 वर्षो का था। कबीर दास जी अहिंसा और शांति प्रिय वयक्तित्व के थे। उन्होंने अपने दोहों के द्वारा समाज में शांति और ज्ञान फैलाया।
धन्यवाद मित्रों अगर आपको कबीर दास जी का जीवन से जुड़ी ये बाते अच्छी लगी तो आप इन्हे जरूर शेयर करे अपने मित्रो और परिवार के साथ।
आगे पढ़ें..... डॉ रघुवंश सहाय वर्मा की जीवनी
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कबीर दास जी ने उस समय एक और दोहा कहा था जो आज के समाज की भी वास्तविकता बताती है।-
हिन्दू कहें मोहि राम प्यारा, तुर्क कहें रहमाना
अर्थात, कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से हमें यह कहना चाहते है की हिन्दू कहते है मेरा राम सच है वह हमें पसंद है , तुर्क (मुस्लिम) कहते हे मेरा रहमान सच है। और इस बात पर लड़कर दोनों मरते है, लेकिन कोई सच को जान नहीं पाया, कोई मानना नहीं चाहता की ईश्वर एक है। कोई इस सच को देखना नहीं चाहता।
कबीर दास जी पढ़े लिखे नहीं थे। वह अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे और शिष्य उन्हें लिख लेते थे। उन्होंने अपने जीवन काल में जितनी भी दोहे और वाणी कही वो सभी "बीजक" में संग्रहित है।
हिन्दू कहें मोहि राम प्यारा, तुर्क कहें रहमाना
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए , मरम न कोउ जाना।
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कबीर दास जी पढ़े लिखे नहीं थे। वह अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे और शिष्य उन्हें लिख लेते थे। उन्होंने अपने जीवन काल में जितनी भी दोहे और वाणी कही वो सभी "बीजक" में संग्रहित है।
कबीर दास जी पूरी तरह से समाज में फैले अन्धविश्वाश के खिलाफ थे, इस बात की पुष्टि इस घटना से की जा सकती है की उस समय लोग मानते थे की कशी में मरने पर स्वर्ग मिलता है और मगहर में मरने पर नर्क। इसलिए कबीर दास जी अपने अंत समय में मगहर चले गए थे और वही अपना अंतिम साँस लिये। ऐसा कहा जाता है की जब उनके मृत्यु हुई तो हिंदू मुस्लिम यह कहकर तर्क करने लगे की वो मुस्लिम है उन्हें दफनाया जायेगा और हिंदू कहने लगे नहीं, कबीर हिन्दू हे उन्हें जलाया जायेगा। और तभी उनका शरीर वहां से गायब हो गया और वहां फूल पड़े हुए मिले। उनका जीवनकाल 120 वर्षो का था। कबीर दास जी अहिंसा और शांति प्रिय वयक्तित्व के थे। उन्होंने अपने दोहों के द्वारा समाज में शांति और ज्ञान फैलाया।
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