PREM KYA HAI - CHANAKYA
प्रेम क्या है ? चाणक्य
जब चाणक्य को यह सुचना मिली की चंद्रगुप्त धनानंद की पुत्री दुर्धरा से प्रेम करने लगा है और वह अपना लक्ष्य को भूलकर प्रेमपाश में बंध रहा है। तब चाणक्य को चिंता होने लगी की अगर चन्द्रगुप्त ज्यादा प्रेम की गहराई में चला गया तो उसे वापस निकलना मुश्किल हो जायेगा। वह अपने लक्ष्य से भटक जायेगा। इसलिए चाणक्य ने योजना बनाकर दोनों को अलग किया।
उसके बाद से चन्द्रगुप्त हर समय सिर्फ दुर्धरा के ख्यालों में डूबा रहने लगा था। उसकी यह अवस्था देखकर चाणक्य ने उसे बुलाया और कहा चन्द्रगुप्त तुम बड़े हो गए हो। आज तुम मुझे अपना गुरु नहीं, अपना मित्र समझ कर, तुम्हारे मन में जो चल रहा है , वह सब मेरे सामने रखो तुम्हारे मन में जो पीड़ा चल रही है में उन सबका समाधान दूंगा।
तब चन्द्रगुप्त ने आचार्य चाणक्य से पूछा - आचार्य! क्या प्रेम करना कोई बुरी बात है क्या स्त्री और पुरुष का मिलन अपराध है ?
उसके बाद से चन्द्रगुप्त हर समय सिर्फ दुर्धरा के ख्यालों में डूबा रहने लगा था। उसकी यह अवस्था देखकर चाणक्य ने उसे बुलाया और कहा चन्द्रगुप्त तुम बड़े हो गए हो। आज तुम मुझे अपना गुरु नहीं, अपना मित्र समझ कर, तुम्हारे मन में जो चल रहा है , वह सब मेरे सामने रखो तुम्हारे मन में जो पीड़ा चल रही है में उन सबका समाधान दूंगा।
तब चन्द्रगुप्त ने आचार्य चाणक्य से पूछा - आचार्य! क्या प्रेम करना कोई बुरी बात है क्या स्त्री और पुरुष का मिलन अपराध है ?
चाणक्य - बिल्कुल नहीं, एक साधारण व्यक्ति, व्यपारी और किसान के लिए प्रेम एक साधारण सी बात है, लेकिन जो व्यक्ति अखंड भारत का सम्राट बनने का महान लक्ष्य लेकर चल रहा हो। उसके लिए यह प्रेम, प्रेम नहीं अभिशाप है। और ये प्रेम होता क्या है , ऐसी नशा जिसमें व्यक्ति डूबकर सबकुछ भूल जाता है ,वह जिससे प्रेम करता है , वह सिर्फ उसी के स्वप्न देखता रहता है , हर अर्थ उसी में समाहित होने लगता है। इंसान को लगने लगता है की उसके जैसा प्रेमी कोई हे ही नहीं, जब उसे प्रेम में पीड़ा होता है तो उसी लगता है यह सिर्फ उसके साथ हो रहा है।
यह सिर्फ एक ऐसा आकर्षण है जिसमे स्त्री पुरुष एक दूसरे की और खींचे चले जाते है। यह सिर्फ एक साधारण सी बात है लेकिन व्यक्ति अगर यहीं नहीं रुका तो वह अपना लक्ष्य को भूल कर प्रेमी को पाना ही लक्ष्य बना लेता है।
यह सिर्फ एक ऐसा आकर्षण है जिसमे स्त्री पुरुष एक दूसरे की और खींचे चले जाते है। यह सिर्फ एक साधारण सी बात है लेकिन व्यक्ति अगर यहीं नहीं रुका तो वह अपना लक्ष्य को भूल कर प्रेमी को पाना ही लक्ष्य बना लेता है।
चन्द्रगुप्त - लेकिन आचार्य लक्ष्य को पाने के लिए मुझे अपनी प्रेम को त्याग करना पड़ेगा इतनी बड़ी कीमत क्यों ?
चाणक्य - बड़े लक्ष्य को पाने के लिए बड़ी कीमत चुकानी ही पड़ती है यह इतना आसान होता तो कोई भी साधारण व्यक्ति अखंड भारत का सम्राट बन जाता। प्रेम सिर्फ साधारण व्यक्ति, व्यापारी, किसान के लिए सामान्य होगा लेकिन जिसका एक महान लक्ष्य है उसके लिए घातक सिद्ध होगा , जिसके मन पर प्रेम, आकर्षण और कामुकता ने डेरा लगाय बैठा हो वह व्यक्ति अपने बुद्धि और शक्ति का पूर्ण रूप से प्रयोग करने में असमर्थ हो जाता है। अखंड भारत का निर्माण के मार्ग में अनुसाशन के कांटे बिछे है। इसपर वही व्यक्ति चल सकता है जिसने अपने आपको बज्र के समान बना लिया है। और ऐसे व्यक्ति के लिए प्रेम और स्त्री का आकर्षण पतन का कारण बन सकता है। ऐसे व्यक्ति को प्रेम कमजोर बना सकता है।
स्त्री में पुरुष से दोगुना भूख , चार गुना लज्जा और आठ गुना ज्यादा कामुकता होती है। और तुमको भले ही लगने लगे की तुम स्त्री को जान गए हो लेकिन तुम स्त्री को कभी नहीं जान सकते।
चन्द्रगुप्त - आचार्य आपकी बात सुनकर मेरा मन अब शांत हुआ। आपने सदैव मेरा मार्ग दर्शन किया है और अब में अपने इछाशक्ति से अपने मन को वश में करूँगा।
यदि आपको यह कहानी अच्छी लगी तो इसे शेयर करे। शेयर बटन ऊपर दिया गया है।
आगे पढ़े >> संदीप माहेश्वरी के द्वारा सुनाई गयी दो दोस्तों की कहानी
स्त्री में पुरुष से दोगुना भूख , चार गुना लज्जा और आठ गुना ज्यादा कामुकता होती है। और तुमको भले ही लगने लगे की तुम स्त्री को जान गए हो लेकिन तुम स्त्री को कभी नहीं जान सकते।
चन्द्रगुप्त - आचार्य आपकी बात सुनकर मेरा मन अब शांत हुआ। आपने सदैव मेरा मार्ग दर्शन किया है और अब में अपने इछाशक्ति से अपने मन को वश में करूँगा।
यदि आपको यह कहानी अच्छी लगी तो इसे शेयर करे। शेयर बटन ऊपर दिया गया है।
आगे पढ़े >> संदीप माहेश्वरी के द्वारा सुनाई गयी दो दोस्तों की कहानी
Comments