2 medhak ki kahani

2 medhak ki kahani, do medhak ki kahani

दो मेढक की एक प्रेरणादायक कहानी 

दो मेढक थे, उनमें बहुत गहरी दोस्ती थी। दोनों साथ-साथ रहते और कहीं भी जाना होता तो साथ-साथ ही जाते। जो दूसरा मेढक था, वह बहरा था। पहला मेढक दूसरे मेढक के इशारों को अच्छे से समझता और उससे इशारों से बात करता था, इसलिए उन दोनों मे अच्छी दोस्ती थी। एक दिन दोनों ने तय किया की वे लोग अपने तालाब से दूसरे तालाब की और घूमने जाएंगे। 

समस्याओं से लड़ो - स्वामी विवेकानंद 

दूसरे दिन, दोनों अन्य तालाब की सैर करने निकल पड़े। बहुत दूर जाने के बाद भी उन्हें कोई तालाब नजर नहीं आया। उनके सामने एक पहाड़ी था, दूसरा मेढक ने इशारे से कहा कि पहाड़ी पर चढ़ कर देखते है कि कोई तालाब दिख रहा है क्या ? नहीं तो हम घर वापस लौट जाएंगे। दोनों ने पहाड़ पर चढ़कर देखा थोड़ी सी दूरी पर एक बड़ा तालाब है। फिर दोनों तालाब की ओर जाने के लिए निचे उतरने लगे। अचानक पहाड़ी पर से उन दोनों का पैर फिसला और वे फिसलते - फिसलते एक गड्ढे में गिर गया। उनलोगों ने गड्ढे में देखा की पहले से कुछ मेढक मरे हुए थे। यह देख, वे दोनों चिल्लाने लगे, उनके चिल्लाने के आवाज़ से पास के तालाब के सारे मेढक आ गए। सभी मेढको को देख उनमें हौसला आया की वे लोग अब उनकी मदद करेंगे। लेकिन वे लोग उनकी मदद करने के बजाय उनको हताश करने लगे। अरे! फिर से यहाँ दो बेचारे फंस गए, अब यह लोग भी निकल नहीं पाएंगे। यहाँ जो भी फंसा पूरी जिंदगी गड्ढे में ही रहना पड़ा। दूसरा मेढक को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह पहले मेढ़क के इशारे का इंतज़ार कर रहा था। उनलोगों की बात सुन, पहला मेढक ने कहा - आपलोग क्यों बकवास कर रहे हैं ? हम यहाँ से बाहर जरूर निकलेंगे। पहले ने दूसरे मेढक को इशारों में समझाते हुए कहा, चलो हमें कोशिश करना चाहिए, ये लोग हमारी मदद नहीं कर पाएंगे। 

वे दोनों अपनी पूरी जोर लगाते हुए उच्छल कर, गड्ढे की दीवार को पार करने की कोशिश करने लगे। ऊपर बैठे सभी मेढक हंस रहे थे और चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे, अरे! क्यों व्यर्थ में अपनी ऊर्जा गवा रहे हो ? तुमलोग नहीं सकोगे यह दीवार चढ़ने, छोड़ दो कोशिश और आराम से बाकि बचे दिन गुजारो। 

कुछ देर बाद उनलोगों की निराशा भरी बाते सुन - सुन कर पहले मेढक को सचमुच में अब लगने लगा था की वह इस गड्ढे से बाहर नहीं निकल पायेगा, फलस्वरूप वह एक कोने में जाकर बैठ गया और अफसोस करने लगा। दूसरा मेढक अभी भी कोशिश में लगा हुआ था। ऊपर से बाकि मेढक उसे भी कह रहे थे, अरे! भाई तुम्हारे दोस्त को देखो, वह समझ गया और शांति से बैठ गया कोने में। तुम बेकार में प्रयास कर रहे हो, नहीं आ सकोगे ऊपर। 

जितना जोर से वे लोग चीख-चीख के कहते, छोड़ दो कोशिश। यह उतना ही जोर लगाता ऊपर आने की। अंत में, यह मेढक एकदम से एक ऐसा छलांग लगाया की सीधा ऊपर आ गया। जैसे ही यह ऊपर आया, सभी लोग कहने लगा वाह ! भाई तुमने तो कमाल कर दिया। लेकिन तुमने यह किया कैसे? इतना ताकत कहाँ से आया ? इतने में निचे फंसा मेढक ने कहा - वह बहरा है, सुन नहीं सकता, उससे इशारे में बात करो। उससे वही सवाल इशारे में पूछा गया ? उसने जवाब दिया - आपलोगो की वजह से तो में ऊपर आया। जब में नहीं चढ़ सक रहा था, आप सभी लोग चिल्ला- चिल्ला कर कह रहे थे, आओ ! ऊपर आओ ! तुम  सकोगे, बहुत आसान है। इस तरह में अपनी पूरी ताकत से बार-बार ऊपर उठने की कोशिश कर रहा था और सफल हो गया। 

यह सब बाते सुनकर, पहला मेढक भी बार - बार कोशिश कर बाहर आया और दोनों साथ में अपना तालाब वापस चला गया। 

शिक्षा : दोस्तों, इस बहरे मेढक की तरह हमें भी अपने कान नकरात्मक शब्दो के खिलाफ बंद कर लेनी चाहिए। लोग हमें कुछ भी बोले, हम उनकी बातो को किस तरह लेते है यह हमारे ऊपर होता है। हमें अपने ऊपर विश्वाश होना चाहिए ताकि लोग हमें हताश न कर पाए। 

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