Andhviswash kya hai ?
अन्धविश्वास क्या है ?
संक्षेप में कहे तो कुछ ऐसी बाते जो प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसे किसी घटना के होने का पीछे का कारण माना जाता है उसे हम अन्धविश्वास कह सकते है।
विस्तार से कहें तो अंधविश्वास एक ऐसा काल्पनिक डर है जिसमें व्यक्ति को किसी घटना के होने का असली वजह तो पता नहीं होता है लेकिन फिर भी वह वर्षो से चली आ रही मान्यताओं को किसी घटना के होने की वजह मान कर घबरा जाता है और सोचता है, यह किसी बुरी घटना के होने का संकेत है।
अब अंधविश्वास के पीछे कितनी सच्चाई है, यह हम नीचे दी गई कुछ बातों से जानने की कोशिश करेंगे।
अंधविश्वास की शुरूवात कुछ ईन कारणों से हुई होगी।
१. पहला कारण संयोग
जैसे कि कभी किसी के साथ कुछ ऐसी दुर्घटना हुई हो, जिसका कारण वह किसी और चीज को मान लिया हो, लेकिन मात्र वह एक संयोग हो। जैसे की बिल्ली का रास्ता काटना या फिर कोई कहीं जा रहा हो तो उसे पीछे से बुलाना।
ऐसी स्थिति में उस इंसान के साथ कभी अगर छोटी- मोटी दुर्घटना हो गई होगी। तो उस दुर्घटना का जिम्मेदार वह "बिल्ली का रास्ता काटना या उसे पीछे से बुलाना" को माना होगा। फलस्वरूप उसने सभी को इस घटना के बारे में बताकर इस अंधविश्वास को फैलाया हो।
२ . निजी स्वार्थ
गावों में अधिकतर यह अन्धविश्वास रहता है की किसी पेड़ पर भुत-प्रेत रहता है। इसका कारण स्पष्ट होता है की बच्चे उस पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ते होंगे या फिर माता - पिता को यह डर होता होगा की बच्चे पेड़ से गिरकर हाथ - पैर न तोड़ ले, इस वजह से लोग उस पर भूत का होने डर फैलाये होंगे। बचपन में स्वामी विववेकानंद जी और उनके दोस्तों को भी कुछ इसी तरह के एक पेड़ पर पिशाच रहने की घटना बताकर डराया गया था। जिसका स्वामी विवेकानंद जी ने विरोध किया था और उस पेड़ पर ४ दिन तक अकेला बैठ कर उस अन्धविश्वास को झूठ साबित किया।
३ . व्यवसाय
कुछ लोग सच जानते हुए भी लोगों के डर फायदा उठाते है और डर को ही व्यवसाय बना लेते है, कोई लोगों का आत्मा का डर दिखा कर ताबीज बेचता है तो कोई राहु-केतु, ग्रह-नक्षत्र का दोष बता कर पूजा पाठ के नाम पर लोगों से पैसे लेते है। पहले फ़िल्में जब बनती थी तो शुरूवात मे लिखा होता था यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन इससे उसका डर का व्यवसाय जब सही नहीं चलने लगा, तो अब वह लिखते है कि यह सत्य घटना पर आधारित है और अंधविश्वास का खूब प्रचार करते हैं, ताकि लोग उन्हें और उत्सुकता से देखे।
४. किसी विशेष कारण से अंधविश्वास फैलाना
जब चाणक्य ने देखा कि सिकंदर पूरे विश्व को जीतता हुआ भारत की तरफ बढ़ रहा है और उसके पास एक विशाल सेना है जिसका सामना वह नहीं कर सकता है। तब चाणक्य ने अंधविश्वास का सहारा लिया। उनके सेना में चन्द्रगुप्त को शामिल कर अंधविश्वास का प्रचार कराया। जैसे कि चंद्रगुप्त ने उनका राष्ट्रीय ध्वज को जला दिया और चाणक्य ने उसका अर्थ सिकंदर के सलाहकार केलस्थनीज को बताया कि यह अपसगुन है। उनके देवी-देवता उन्हें संकेत दे रहे है, वापस लौटने का। वे नहीं चाहते कि सिकंदर भारत पर आक्रमण करे।
चाणक्य सिकंदर के सेना मे असंतोष फैला देते थे, उन्हें भड़काते थे। यह सब चंद्रगुप्त, चाणक्य के इशारे पर करता था। उनके खाने में गड़बड़ी कर देते थे और कहते थे कि यहां के देवीय शक्तिया यह सब कर रहे है क्योंकि वह उनसे खुश नहीं है। इस तरह चाणक्य ने सिकंदर से बिना युद्ध किए ही उसे मानसिक रूप से कमजोर कर पराजित कर दिया। उन्हें यह विश्वास दिलाया गया कि वह भारत से नहीं जीत सकता और उन्हें वापस लौटने पर मजबूर कर दिया। सिकंदर जैसे शक्तिशाली राजा जिसने आधी दुनिया जित ली थी वह मात्र एक अन्धविश्वास के सामने हार गया। क्योंकि वह अन्धविश्वास में विश्वास कर लिया था। चाणक्य ने हमारे देश की रक्षा के लिए अंधविश्वास का सहारा लिया था, लेकिन आज भी कई जगह हमारे देशवासी इन अंधविश्वास को सच मान कर उन्हें ढो रहे है और अपने आप को आगे बढ़ने से रोक रहे है।
शिक्षा : दोस्तों अन्धविश्वास में विश्वास कभी न करे। क्योंकि यह इंसान को कर्म करने से रोकता है, यह आपके समय को बर्बाद करती है। आपके विकाश में बाधा बनती है, यह आपके सोच को प्रभावित कर भय पैदा करती है, आपको मानसिक रूप से क्षति पहुंचाती है, उस दुनिया से बाहर आए जो है ही नहीं, निर्भय बने और हर डर तथा हर अंधविश्वास का सामना करे। अपने बच्चों और स्वयं को शिक्षित करे क्योंकि शिक्षा ही आपको सही तरीके से सोचने की ज्ञान देती है।
दोस्तों सकारात्मक से जुड़े रहे एवं ईश्वर का ध्यान करे। यह आपको सही शिक्षा देकर आपको निर्भय बनाएगी। सही गलत के फर्क़ को समझने मे आपकी सहायता करेगी।
धन्यवाद ,
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