विकलांगता मात्र एक कल्पना है हम हर तरह से सक्षम है - VIKLANGTA MATRA EK KALPNA HAI HUM HAR TARAH SE SAKSHAM HAI
प्रकृति ने हमे जन्म से ही काबिल बनाया है।
आप यदि विकलांगों के बारे में कहेंगे की वह काबिल नहीं है, तो आप यह बात जान लीजिए कि एक विकलांग इंसान भी ऐसा काम कर जाता है जो कुछ साधारण इंसान नहीं कर सकता है।
तो क्या वजह है ? जो कुछ विकलांग इंसान अपनी विकलांगता को कमजोरी मान पूरी जिंदगी अपने किश्मत को कोसते है और ऐसे ही दूसरे के सहारे जीवन पार कर देते है।
तथा क्या कारण है ? जो कुछ विकलांग अलग - अलग शक्तियां मेहसूस करते है?
जैसे कि कोई मंदबुद्धि, तो कोई बुध्दिमान, तो कोई कमजोर, तो कोई शक्तीशाली होता है।
इसका सीधा जवाब है ' हम ', हम ही जिम्मेदार है इसके।
कैसे?
चलिए बताता हूं।
जब हम बड़े होते जाते हैं, हमे सीमित करने की कोशिश चलती रहती है, हमारे विचारो को सीमित किया जाने लगता है हर बात पर रोका जाता है, चाहे वो काम सही हो फिर भी।
एक बच्चा दिन भर उर्जावान रहता है, बिना थके और रुके वह दिन भर कुछ न कुछ कर्ता रहता है, न धूप, न बारिश किसी की भी चिंता नहीं रहती है।
उसके ऊर्जा को कम कौन कर्ता है, हम। चलो घर मे रहो, आराम करो, दोपहर मे नही खेलते, धूप है अंदर रहो, इत्यादि। जब हम बड़े होते है तब अधिकतर हमारे आस पास कुछ गलत होता देख, हम पहली बार उसके खिलाफ बोलते है तब भी हमें रोका जाता है। अपने काम से काम रखो और कोई साथ नहीं देता।
प्रकृति का नियम है, आप जो चीज़ रोजाना करोगे, उसमे आप माहिर बन जाओगे। प्रकृति आपकी शक्ति बढ़ाती रहती है।
लेकिन जिस चीज मे आप कामचोरी करते हो, उसमे आप 0 होते हो। प्रकृति आपकी वह शक्ति छिन लेती है। जिस शक्ति का आप उपयोग ही नहीं करोगे, उस शक्ति की आपको आवश्यकता है ही नहीं, तो प्रकृति आपको वह ताकत क्यों देगी।
लेकिन कुछ विकलांग इस बात को नकारते है और अपने जीवन मे अद्भुत काम करके दिखाते है
तो चलिए दोस्तों अपने आपको सीमित नहीं कीजिये। अपने आपको फैलाए, अपने खोज में निकले आप क्या- क्या कर सकते है। अपने शक्ति को पहचाने और कुछ अद्भुत काम करके दिखाए। जैसे की इन महान व्यक्तियों ने अपने विकलांगता को कमजोरी बनने नहीं दिया।
तुलसीदास जी दृष्टिहीन होते हुए भी रामचरित मानस और हनुमान चालीसा जैसे ग्रन्थ और काव्य लिखें।
रविंद्र जैन जी संगीत की दुनिया में अपनी एक पहचान बनायी और पद्मश्री पुरुस्कार हासिल किया। वह भी जन्म से नेत्रहीन थे।
डॉ रघुवंश सहाय वर्मा जिसके जन्म से ही हाथ नहीं होते हुए भी उन्होने अपने पैरो से रचनाएँ लिखी।
भरत कुमार जो की एक पैरा स्विमर है। उनका बायां हाथ नहीं है, फिर भी वह राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय दोनों मिलाके ५० से अधिक पदक जित चुके है।
अरुणिमा सिन्हा जिसकी रैल यात्रा के दौरान, एक दुर्घटना मे एक पैर कट गए और दूसरा पैर बुरी तरह से घायल हो गया लेकिन फिर भी वह उसके बाद माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की और वह वहीँ नहीं रुकी उसके बाद उन्होंने दुनिया की 6 और चोटियों की चढ़ाई की।
मलाथी कृष्णमूर्ति हॉला एक पैरा एथलीट है जो 300 से अधिक मेडल जीत चुकी है। जिसमें पद्मश्री और अर्जुन पुरूस्कार भी शामिल है। इन्होने भी कभी अपने विकलांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और अपने जीवन मे सफलता हासिल की।
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