kavita Prakriti ke liye- कविता प्रकृति के लिए
करूँ तो करू क्या तेरी तारीफ,
करु तो करु क्या तेरा दीदार,
ए प्रकृति, ए धरा!
ए नटी , ए वसुन्धरा!
तू ही बता
लिखुं तो क्या मैं लिखू,
करू तो क्या मैं करू।
तेरी स्वच्छंद पवन को,
हमने ही धुंधला किया।
तेरे नीले अम्बर को,
हमने ही काला किया।
स्वर्ण से चमकते दामन को,
हमने ही फाड़ दिया।।
तेरी सारी सुंदरता को,
हमने ही बरबाद किया।
माफ़ी मांगू तो क्या मैं मांगू ,
बोलू तो क्या मैं बोलू
तू ही बता प्रकृति,
आज तेरे क्रोध को,
मैंने ही श्राप कहा ।
तेरे रुखे केशों का,
मैंने ही अपमान किया ।
अपने मतलब के लिए,
अन्य जीवो का नाश किया।।
माफ कर प्रकृति,
माफ़ कर माँ,
मेरे पास शब्द नहीं
क्या मैं कहूं !
क्या ही मैं कहूं
आज तेरे रूप के
हम ही जिम्मेदार हैं
मैं भी जिम्मेदार हुं।
SOURCE - टेलीग्राम ग्रुप में भाग्यश्री द्वारा लिखित
Comments